GUEST REPORT
1962 युद्ध में चीन की हिमायत के कारण रुका कम्युनिस्टों का विकास
सीपीआई नेता दिवंगत राजकुमार पूर्वे की पुस्तक में और भी खुलासे
विशेष रिपोर्ट, मौर्य न्यूज18 ।



बिहार के प्रमुख सी.पी.आई.नेता दिवंगत राजकुमार पूर्वे ने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक ‘स्मृति शेष’ में 1962 के चीनी हमले का भी जिक्र किया है। स्वतंत्रता सेनानी व सी.पी.आई.विधायक दल के नेता रहे दिवंगत पूर्वे के अनुसार, ‘‘चीन ने भारत पर 1962 में आक्रमण कर दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आक्रमण का विरोध किया।
पार्टी में बहस होने लगी
कुछ नेताओं का कहना था कि चीनी हमला हमें पूंजीवादी सरकार से मुक्त कराने के लिए है। दूसरों का कहना था कि माक्र्सवाद हमें यही सिखाता है कि क्रांति का आयात नहीं होता। देश की जनता खुद अपने संघर्ष से पूंजीवादी व्यवस्था और सरकार से अपने देश को मुक्त करा सकती है। पार्टी के अंदर एक वर्ष से कुछ ज्यादा दिनों तक इस पर बहस चलती रही।
यानी, लिबरेशन या एग्रेशन का ?
इसी कारण कम्युनिस्ट पार्टी, जो राष्ट्रीय धारा के साथ आगे बढ़ रही थी और विकास कर रही थी, पिछड़ गयी। देश पर चीनी आक्रमण से लोगों में रोष था। यह स्वाभाविक था ,देशभक्त ,राष्ट्रभक्त की सच्ची भावना थी। यह हमारे खिलाफ पड़ गया। कई जगह पर हमारे राजनीतिक विरोधियों ने लोगों को संगठित कर हमारे आॅफिसों और नेताओं पर हमला भी किया।
हमें ‘‘चीनी दलाल’’ कहा गया।
आखिर में उस समय 101 सदस्यों की केंद्रीय कमेटी में से 31 सदस्य पार्टी से 1964 में निकल गए। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भारत की कम्युनिस्ट पार्टी/माक्र्सवादी /रखा। सिर्फ भारत में ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के इस अंतरराष्ट्रीय फूट ने पूरे विश्व में पार्टी के बढ़ाव को रोका और अनेक देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों में फूट पड़ गयी।

आपकी रिपोर्ट –

सुरेन्द्र किशोर
आप देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं। बिहार से हैं। आप लंबे समय से पत्रकारिता की दुनिया से जुड़े हैं। आप देश के प्रतिष्ठत समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अहम पदों पर अपना योगदान दिया है। अब भी आपकी लेखनी देश और समाज को दिशा देती है। आपका आभार।

आभार ।





