खास मुलाकात : अनिल कुमार, पोस्टमास्टर जनरल, बिहार
कोरोना काल में पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार बोले- किसी की आंखों में आंसू नहीं आने देंगे !
नयन, पटना, मौर्य न्यूज18 ।

कोई पैर से दिव्यांग। कोई हाथ से। कोई 80 साल, तो कोई 90 साल का वृद्द। कोई तीन दिनों से भूखा। किसी को कोई देखने वाला नहीं। कोई पैसे के बिन हताश, उदास । तो कोई भोजन के बिन। कोई दवा के बिन। तपती शरीर । जुकाम। काम ठप। घर में बंद। बाहर निकलो, पुलिस के डंडे। घर में पेट की खातिर तड़पना। किसी के एकाउंट में पैसा है। जेब में नहीं। बाहर चहुंओर कोरोना..कोरोना…कोरोना।
आप समझिए ! स्थिति क्या रही होगी। जब पहलीबार लॉक डाउन हुआ था। जब पहली बार कोरोना का डर सामने आया था। बाहर निकलने पर पुलिस लाठियां भांज रही थीं और लोग हताश और बेहबास थे।

मैं उन लोगों की बात नहीं कर रहा…जो हर तरह से सक्षम थे…जो हर स्थिति में बेहतर रहने, बेहतर करने के काबिल थे। मैं उनकी बात कह रहा हूं, जिनके पास ना तो मोबाइल था, ना जीने-खाने का कोई सामान इक्ट्ठा कर सके थे, ना ही इक्टठा करने में समर्थ थे। जिनके पास कुछ था भी तो वो पैसे कहां से लाएं। बैंक कैसे जाएं वाली स्थिति में थे। कोरोना का डर मुंह बाए खड़ा था। उस सुदूर गांव में जाकर देखते – जहां जिसका कोई नहीं होता, उसका खुदा होता है…वाली स्थिति थी। वहां पोस्टऑफिस गया। पोस्टकर्मी गए। पोस्टमैन गए। पोस्ट ऑफिस का एक-एक कर्मचारी उठ खड़ा हुआ। कहा- मैं हूं ना। बिहार पोस्टऑफिस है ना। हमारे अधिकारी और कर्मचारी हैं ना। डाकिया है ना।

नमस्कार !
मैं हूं नयन। और आप हैं मौर्य न्यूज18 डॉट कॉम के साथ। और हम बात कर रहे हैं…बिहार के पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार से।


पोस्टमास्टर जनरल बताते हैं कि क्या-क्या ना किए हमने…ये कोरोना आपसे बचाने की खातिर। थोड़े मजाकिए हैं। पर दर्द को इतनी गहराइयों से समझते हैं, परखते हैं, निदान निकालते हैं, ताकत झोंकते हैं, चीजों को अंजाम तक पहुंचाते हैं कि आप जानेंगे तो.. हंसते-हंसते रोना सीख लेंगे और रोते-रोते हंसना ।

कहते हैं, कोरोना संकट में बस मैंने एक बात तो ठान ली थी कि किसी के आंखों में आंसू नहीं आने देंगे। बिहार का एक-एक पोस्टऑफिस, एक-एक कर्मचारी को हमने इस काम में झोंक दिया। सबसे खुशी की बात है कि पोस्टऑफिस के सारे कर्मचारियों ने जुनून के साथ काम किया है। औऱ कर भी रहे हैं ।




पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार कहते हैं…आप थोड़ा टाइम देंगे तो एक-एक बात बताउं।
पहली बात –

पोस्टऑफिस घर-घर जाकर बैंक से पैसे निकालने का इंतजाम किया। यानि बैंक कोई भी हो पोस्टकर्मी आपके घर तक आपका पैसा पहुंचाते रहे। यानि पोस्टऑफिस ने दरबाजे पर बैंक पहुंचाई। 1500 डाकिया इस काम में लगे । विभिन्न सरकारी योजनाओं के पैसे भी हमने करीब 2000 करोड़ रूपये बांटे।

हमने सेवा देने के लिए सुदूर इलाके को पकड़ा । चार-साढ़े चार लाख रिलीफ पैकेट बांटे गए।
आपको यकीन नहीं होगा। बच्चे, महिलाएं। बुजुर्ग । तीन से चार दिनों तक खाना नहीं खाया था। देख कर आंखें नम हो जाती थीं।
बिहार के तमाम इलाकों में जाइए – नवादा चले जाइए। रजौली चले जाइए। जमुई चले जाइए। मधुबनी। दरभंगा। कोसी का इलाका चले जाइए..खगड़िया। सहरसा। किसी भी इलाके में आप जाएंगे आपको पता चलेगा। पोस्टऑफिस लोगों के दर्द के साथ खड़ा रहा। और उसको जीवन देने में मदद की है।

अनिल कुमार कहते हैं कि इस संकट को हमने सेवा का बेहतर अवसर समझा। अब तो थोड़ा वातावरण बदला भी है। लेकिन एक टाइम था..शुरूआती टाइम को याद करिए – कोरोना के नाम पर कोई पास फटकने को तैयार नहीं था। तब भी उनके साथ पोस्टऑफिस था। अब भी है। हमेशा रहेगा ।


दूसरी बात –
दवा की थी..। सुदूर ग्रामीण इलाकों में दवा की दुकानों में भी दवा की किल्लत थी। लोगों के पास दवा कहां से पहुंचे। वैसी स्थिति में हमने कोलकत्ता से. चिन्नई से. दिल्ली से पार्सल के जरिए …रेलवे के अधिकारियों से बात कर । स्पेशन ट्रेन की व्यवस्था कर, किसी भी तरह दवा मांगवा कर इलाकों में बंटवाता रहा। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर , या कोई ऐसी बीमारी जिसके लिए लाइफटाइम दवा खानी है…उनको भी घर तक दवा दी गई। ये सब जहां तक हो सका किया गया। मुफ्त सेवा दी गई।

मास्क, सेंनेटाइज़र, पीपीई कीट सहित कई ऐसी चीजें जो कोरोना से बचाव के लिए जरूरी था, वो सबके सब इंतजाम किए, बांटे गए। अभी भी लगातार किए जा रहे हैं।


हमने पोस्टमास्टर जनरल से इस दौरान रोजगार दिए जाने पर भी बात की।
तो कहने लगे, सही बात है। कोरोना संकट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से इसे अवसर के रूप में लेने को कहा – और आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात कही है। पोस्टऑफिस ने उसी तर्ज पर काम किया है।

आपको बता दें कि ग्रामीण हो या शहरी सभी इलाकों में घर में बैठी महिलाऐं मास्क बनाती थीं, उसको हमारे पोस्टऑफिस कर्मी, डाकिया सब मिलकर बेचा करते ।

मधुबनी पेंटिंग बना बनाया, बनवाकर भी उसे मार्केट में बेचना, जो भी महिलाएं या पुरूष इस काम में लगे थे उनको अच्छी कीमत दी गई। मंजूसा, मधुबनी, टिकूली, पटना कलम के कलाकारों के सामान डाकिया ने बेचा।
इससे हर घर में कामकाजी महिलाओं और युवाओं के हाथ में रूपये आए। अधिक से अधिक रोजगार मिला। जरूरत की बेला में रूपये कमाने का अवसर पोस्टऑफिस ने दिया औऱ आगे भी देंगे।

इतना ही नहीं..खादी ग्राम उद्योग, कस्तूरबा ग्राम उद्योग, पतंजली को जोड़ा गया। वर्तमान में बिहार के करीब डेढ़ सौ पोस्ट शॉपी खोले गए हैं। जहां कोरोना से जुड़े सभी समान उपलब्ध हैं। बिना प्रॉफिट कमाए पोस्टऑफिस ये सब सेवा दे रही है।

कई तरह की फेंचाइजी दी जा रही है…ताकि युवा हों या कोई भी। पढ़े लिखें हो या अनपढ़ हर किसी के लिए पोस्टऑफिस में काम है…मसलन,
- पोस्टऑफिस की फेंचाइजी दी जा रही है।
- बैंकिग सेवा बढ़ाई गई है, एजेंट बहाल किए जा रहे।
- बीमा के फिल्ड में काम हो रहा।
- डाकिया हों या कोई भी व्यक्ति हर कोई कमिशन के साथ काम से जुड़ सकता है।
- शॉपी में भी स्कोप है।
- पोस्टऑफिस आकर कोई युवा समझना चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है।
अब तो पोस्टऑफिस में ही जाति, आय प्रमाण पत्र बनाने की व्यवस्था, बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन सब कुछ यहीं एक ही छत के नीचे। यानि पोस्टऑफिस आकर अपने काम की बहुत सारी चीजें तलाश सकते और आगे बढ़ सकते। कहीं भटकने से तो बेहतर है कि पोस्टऑफिस से जुड़कर अपनी आमदनी बढ़ाई जाए।

जो जितनी नई बात सीखेगा, वही उतना आगे बढ़ेगा…।
पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार कहने लगे…ये तो सेवा की बात थी …भोजन से, पानी से..जीवन रक्षक दवा से…वस्त्र से…रोजगार से…धंधे से हर तरह से लोगों को मदद की गई।

लेकिन कोरोना काल में एक औऱ चीजे हमने देखी…वो था डिप्रेशन…मानसिक दिवालियापन के शिकार होने लगे थे लोग। समझ में नहीं आता क्या करें। कोरोना से पता नहीं क्या होगा। कैसे जिएंगे…वैगरह-वैगरह..। जो अनपढ़ थे …वो तो थोड़ी नासमझी में ठीक भी थे…लेकिन जो पढ़े लिखे थे..या थोड़े बहुत मोबाइल या इधर-उधर की बातों को तोड़ मड़ोर के समझने वाले थे उनकी मानसिक हालत बहुत खराब दिखी। वहां भी हमने पोस्टऑफिस कर्मियों की टीम लगाई। खुद गया। कैंप किया। मोटिवेशनल बातें की। साहस और हिम्मत की घुट्टी पिलाई। ये ऐसी दवा थी जो कहीं से मंगाई नहीं जा सकती थी और ना पिलाना..खिलाना आसान था। लेकिन फिर भी संकट कालीन में मानसिक मजबूती बनाने का कार्यक्रम भी जारी रहा। इसमें सामाजिक संस्थाओं का सहारा भी मिला।

और भी बहुत सारी बातें हैं कितना बताउं। बिहार की तमाम पोस्टऑफिस अपने मिशन में लगी है। बस, मेरे संज्ञान में आना चाहिए। दर्द है तो पोस्टऑफिस आपके साथ खड़ा है। उसे दूर करने में जुट जाएगा।

पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार से हमने ये पूछा कि क्या ये सब केन्द्र सरकार ने करने को कहा था…
तो उन्होंने कहा कि सरकार हमें कोई भी जिम्मेदार पोस्ट पर बिठाती है तो कुछ सोंच कर ही बिठाती है कि हर बात कहना ना पड़े। और अधिकारी जन सेवा कर सकें। जब आप ठान लेंगे तो पोस्टऑफिस एक ऐसा सैक्टर है जहां जनता की सेवा करने का बहुत बड़ा स्कोप है।


यहां बैंकिंग भी है, शॉपिंग भी है। यानि बाजार भी है। रोजगार भी है। माल ढुलाई भी है। क्या नहीं कर सकती पॉस्टऑफिस । मैंने भी वही किया। सरकार तो काम देखी औऱ प्रोसाहित भी करती रही। हमारे विभाग के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोशल मीडिया के माध्यम से हो. टेलीफोन से हो, या आमने-सामने हो। हर तरह से कामों के प्रति उत्साहित किया। हां, ये कह सकता हूं कि पूरे देश में बिहार के पोस्टऑफिस ने जो किया, वो अपने आप में अलग था और आगे भी बेहतर करेंगे। और बेहतर काम करने के लिए सरकार ने जॉब दिया है। इसलिए हमलोग आदेश के इंतजार में नहीं रहते , बस देशहित में कार्य जारी रखते हैं। इस कार्य से हमारी सरकार काफी खुश है। अभी और भी चुनौतियां है जिसे पूरा करेंगे।
बहुत-बहुत शुक्रिया। बातचीत आगे भी जारी रहेगी पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार से।
धन्यवाद !
पटना से मौर्य न्यूज18 के नयन की रिपोर्ट ।







