MLC बनने की उम्मीद जो ना कराए !
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का गुस्सा सामने आया
भाजपा के कार्यकर्ताओं में अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं
लगता है मन के अंदर ही दबाए हुए हैं गुस्सा

मौर्य न्यूज18, पटना
अतुल कुमार

बिहार में भाजपा-जदयू की ओर से 12 एमएलसी के नामों की घोषणा होते ही जदयू में घमासान की स्थिति है। वर्षों से पार्टी के वफादार रहे प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने खुलकर विरोध जताया है। उनका साफ कहना है कि राजनीति में निष्ठा और योग्यता की कोई आवश्यकता नहीं है। ये सब बातें अब केवल डिक्शनरी में ही अच्छी लगती हैं।
मौर्य न्यूज18 के विशेष संवाददाता से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फैसले से काफी आहत हैं। राजीव रंजन ने कहा है कि बिहार में कायस्थ समाज हाशिए पर जा चुका है। कायस्थ समाज के लिए यह अस्तित्व के संकट का दौर है।
संवाददाता ने जब उनसे इस बिंदु पर सवाल किया कि जदयू ने मनोनयन के लिए कला, संस्कृति व समाज सेवा जैसे क्षेत्रों से आनेवाले लोगों की अनदेखी क्यों की तो इस पर उनका कहना था कि यह सब कानूनी व तकनीकी पक्ष है, इस पर उन्हें कुछ नहीं कहना है। राजीव रंजन जेडीयू के तेजतर्रार प्रवक्ता के तौर पर जाने जाते हैं। पार्टी की नीति व सिद्धांतों को दमखम के साथ टीवी, अखबार व अन्य जगहों पर रखने का काम करते हैं।
बता दें कि जदयू ने पुराने प्यादे पर ही भरोसा जताया है। उपेंद्र कुशवाहा को छोड़ दें तो अशोक चौधरी, संजय सिंह, संजय गांधी, ललन सर्राफ और रामवचन राय को फिर से विधान पार्षद बनाया गया है।
राजनीतिक गलियारे में भी नीतीश की भद पीट रही है क्योंकि एमएलसी के मनोनयन के लिए पार्टी ने उन्हें ही अधिकृत किया था। इसलिए भी पार्टी के असंतुष्ट नेता व कार्यकर्ता सीधे तौर पर उन्हें दोषी मान रहे हैं। पार्टी में कई लोग लंबे समय से इसी आशा में काम करते हैं कि वक्त आने पर यदि उन्हें लोकसभा या विधानसभा का टिकट नहीं मिला तो राज्यसभा या फिर विधान परिषद में उन्हें जरूर चुनकर भेजा जाएगा लेकिन लगता है कि अब यह सब बीती बातें हो गई हैं।

राजनीति में शुचिता, नीति, सिद्धांत व मर्यादा की बात करनेवाले नीतीश कुमार से पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं की ऐसी उम्मीद नहीं थी। जदयू ने एक भी ऐसे लोगों को एमएलसी नहीं बनाया जो कहीं से भी कला, संस्कृति व समाज सेवा के क्षेत्र से आते हों। यह राज्यपाल कोटे से मनोनयन के लिए एक जरूरी शर्त है।

राज्यपाल कोटे की एमएलसी सीटों पर कला, विज्ञान, साहित्य और समाजसेवा के क्षेत्रों से आने वाले लोगों को मनोनीत किया जाता है। राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाले एमएलसी सदस्यों के नामों की सिफारिश राज्य सरकार ही करती है। इसके बावजूद यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वे सरकार की सिफारिश को मानें या उसे लौटा दें। लेकिन, राज्य सरकार की दोबारा भेजी गई सिफारिश को राज्यपाल की मंजूरी मिल जाती है।
हालांकि, राज्यपाल की राज्य सरकार से अपेक्षा होती है कि जिन नामों की सिफारिश राज्य सरकार कर रही है, वे गैर राजनीतिक हों। इसके बावजूद हाल के वर्षों में सत्ता पर काबिज पार्टियां राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों को ही राज्यपाल कोटे के तहत एमएलसी के लिए मनोनयन की सिफारिश करती हैं।

