- Birsa Agriculture University के Scientist ने खरीफ शोध की तैयारी शुरू की
- पिछले 4-5 दिनों की वर्षा को देखते हुए अगले एक-दो दिनों में टांड़ एवं मध्यम भूमि की तैयारी पूरी करने और खरीफ फसलों की बुआई शुरू करने की योजना बनाई
Ranchi : Birsa Agriculture University Ranchi के VC डा. ओंकार नाथ सिंह के निर्देश पर कृषि विज्ञानियों ने खरीफ फसल शोध कार्यक्रमों की तैयारी शुरू कर दी है। निदेशक अनुसंधान डा. पीके सिंह एवं डीन एग्रीकल्चर डा. डीके शाही के नेतृत्व में कृषि विज्ञानियों के दल ने वेस्टर्न सेक्शन फार्म के खेतों में खरीफ शोध से संबंधित कार्यों का आकलन किया। पौधा प्रजनक विज्ञानियों के दल ने पिछले 4-5 दिनों की वर्षा को देखते हुए अगले एक-दो दिनों में टांड़ एवं मध्यम भूमि की तैयारी पूरी करने और खरीफ फसलों की बुआई शुरू करने की योजना बनाई। मौके पर निदेशक अनुसंधान ने विज्ञानियों को करीब 55 एकड़ में फैले इस शोध फार्म में खरीफ शोध से जुड़ी फसलों में मड़ुआ, मकई, अरहर, उरद, मूंग, सरगुजा, मूंगफली एवं सोयाबीन आदि के बुआई कार्य को एक सप्ताह में पूरी करने को कहा। शोध कार्य में BAU द्वारा विकसित एवं हाल में विकसित किस्मों के गुणात्मक बढ़ोतरी को प्राथमिकता देने को कहा। उन्होंने पौधा प्रजनक विज्ञानियों को राज्य के तीन कृषि पारिस्थितिकी में अवस्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों, दुमका, चियांकी (Palamu) एवं दारीसाई (पूर्वी सिंहभूम) का दौरा करने और विकसित किस्मों तथा शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया।
निदेशक अनुसंधान ने विज्ञानियों को विभिन्न ICAR परियोजना के अधीन संचालित अनुसंधान कार्यक्रमों के तहत किसानों के खेतों में खरीफ फसलों का अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण (FLD) ससमय शुरू करने का निर्देश दिया। साथ ही बीजोत्पादन एवं अन्य कार्यक्रमों में राज्य के कृषि विज्ञान केंद्रों की सहभागिता एवं सहयोग पर बल दिया। मौके पर डीन एग्रीकल्चर ने बुआई से पूर्व खेतों में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन तथा दलहनी एवं तेलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर (जैव उर्वरक) के उपयोग की जानकारी दी। आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग की अध्यक्षा डा. मणिगोप्पा चक्रवर्ती ने बताया कि वेस्टर्न सेक्शन फार्म में 8 अखिल भारतीय समन्वित परियोजना एवं 12 राज्य योजनाओं से संबंधित खरीफ शोध कार्यक्रम होंगे। फार्म के 55 एकड़ भूमि में मिल्लेट्स फसलों (मड़ुआ, गुंदली, कंगनी एवं कोदो), मकई, अरहर, उरद, मूंग, सरगुजा, सोयाबीन, मूंगफली तथा धान आदि फसलों से संबंधित शोध कार्यक्रम होंगे। इन शोध कार्यक्रमों का राज्य हित एवं राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व है।
शस्य विज्ञानी डा एकलाख अहमद ने फार्म के करीब 17 एकड़ भूमि में धान की करीब 480 उन्नत किस्मों पर शोध कार्यक्रम की बात कही। टांड़ भूमि में धान की सीधी बुआई जल्द शुरू किए जाने की बात कही। उन्होंने धान की सीधी बुआई में अनुशंसित प्रभेदों में सहभागी, बिरसा धान 108, बिरसा विकास धान 109, बिरसा विकास धान 110, बिरसा विकास धान 111 एवं वंदना को उपयुक्त बताया। विज्ञानी दल ने फार्म सनई की खड़ी फसल को देखा और फसल प्रदर्शन पर संतोष जताया। शस्य विज्ञानी डा. अशोक कुमार सिंह ने सनई फसल का धान के खेत में हरी खाद के रूप में उपयोग करने की बात कही। उन्होंने बताया कि इसे धान रोपाई सीधी बुआई से पहले खेतों में डालकर मिलाया जाएगा। बुआई के 36 से 40 दिनों के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 20 सेमी की गहराई पर पलट दिया जाएगा। इससे खेतों में नमी बनी रहती है, मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार के साथ-साथ यह खड़ी धान फसल को 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन भी प्रदान करता है। दल में डा. नीरज कुमार, डा. सीएस महतो, डा. एकलाख अहमद, डा. अरुण कुमार, डा. अशोक कुमार सिंह, डा. एके सिंह, डा. नूतन वर्मा उपस्थित रहे।