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सखी हे, चलु मधुबन फूल पात लोढ़े लेल…आएल मधुश्रावणी अहिबात पूजय लए…

  • झारखंड मिथिला मंच जानकी प्रकोष्ठ द्वारा 20 जुलाई को लेकव्यू गार्डन अरगोड़ा में मधुश्रावणी महोत्सव का आयोजन किया जाएगा
  • मधुश्रावणी में व्रतियों को महिला पंडित न सिर्फ पूजा कराती हैं बल्कि कथा वाचन भी करती हैं, इन्हें महिलाएं पंडित जी कहकर बुलाती भी हैं

रांची/सुपौल : सखी हे, चलु मधुबन फूल पात लोढ़े लेल, आएल मधुश्रावणी अहिबात पूजय लए…सखी फूल लोढ़े चलू फुलवरिया सीता के संग सहेलियां…नवविवाहिता सोलह श्रृंगार कर अपनी सहेलियों के साथ इस गीत को गाते इन दिनों शहर के कुछ मोहल्लों में सुनी जा रही हैं। दाम्पत्य जीवन के अखंड सौभाग्य और पति के दीर्घायु होने की कामना को ले मिथिलांचल की नवविवाहिताओं का प्रमुख लोकपर्व मधुश्रावणी मंगलवार को नाग पंचमी से प्रारंभ हो गया। पहले दिन से ही मिथिलांचल के नवविवाहिताओं के घर में पारंपरिक, श्रृंगारिक एवं भक्ति गीतों से गुलजार हो गया है। मधुश्रावणी 15 जुलाई पंचमी से प्रारंभ होकर 27 जुलाई तृतीया को टेमी दागने के साथ समाप्त होगी। श्रावण कृष्ण पंचमी से शुरू मधुश्रावणी मिथिला वासियों का इकलौता ऐसा लोकपर्व है जिसमें पुरोहित महिला ही होती हैं। देश के किसी भी क्षेत्र में शायद ही किसी पूजन का पौरोहित्य महिला करती हों।

मधुश्रावणी में व्रतियों को महिला पंडित पूजा कराती हैं और कथा वाचन भी करती हैं। व्रतियां महिला पंडित को दक्षिणा भी देती हैं। यह राशि लड़कों के ससुराल से आती हैं। पंडितजी को वस्त्र व दक्षिणा देकर व्रती विधि विधान, परंपरानुसार अपना पंद्रह दिनी व्रत मनाती हैं। मिथिला में नवविवाहितों के लिए यह विशेष पर्व है। इस वर्ष जिनकी शादी हुई है वे इस पर्व को 15 दिनों तक उपवास रखकर मनाती हैं। दिन में फलाहार के बाद रात में ससुराल से आए अन्न से तैयार अरबा भोजन ग्रहण करतीं हैं। वहीं शाम ढलते ही नई दुल्हन की तरह सज संवरकर सखियों संग हंसी ठिठोली करती हर दिन डाला लेकर निकलती हैं और पूरे मनोयोग से पंडितजी की कथा सुनती हैं।

मधुश्रावणी महोत्सव का होगा आयोजन :
झारखंड मिथिला मंच के जानकी प्रकोष्ठ की महासचिव निशा झा ने बताया कि यह पर्व विशेषकर नवविवाहिता अपने वैवाहिक जीवन और पति की दीर्घायु के लिए बिषहरा, माता गौरी और बाबा भोलेनाथ की पूजा करती हैं। नवविवाहिता 13 दिनों तक बिना नमक का खाना खाती हैं। यह पर्व नवविवाहिता अपने मायके में करती हैं और इस दौरान उनके ससुराल से भार के साथ साथ खाने पीने के सामान और नए वस्त्र भी आते हैं। द्वारिकापुरी चुटिया निवासी रामशंकर चौधरी की पुत्रवधू श्रेया चौधरी समेत कई अन्य नवविवाहिता अपने आवास में पूजा कर रही हैं। जानकारी देते जानकी प्रकोष्ठ की महासचिव निशा झा ने बताया कि झारखंड मिथिला मंच जानकी प्रकोष्ठ के द्वारा 20 जुलाई को 2 बजे से लेकव्यू गार्डन अरगोड़ा में मधुश्रावणी महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। जिसमें रांची की जितने भी नवविवाहिता हैं वो सभी अपनी डाला सजाकर आएंगी। डाला सज्जा प्रतियोगिता का आयोजन होगा। जिसमें सभी प्रतियोगी को उपहार मंच की ओर से दिया जाएगा। निशा झा ने कहा इस लोकपर्व को ले रंग बिरंगी साड़ियों एवं परिधानों से सज धजकर शहर की नवविवाहिताएं पुष्प एवं पत्ता लोढ़ने का काम शुरू कर चुकी हैं।

पर्यावरणीय संतुलन से भी कराता है रू-ब-रू :
बिहार के सुपौल जिला की नवविवाहिता प्रीति (नन्ही) कहती हैं कि यह पर्व नवविवाहिताओं को प्रकृति से समन्वय बनाने एवं पर्यावरणीय संतुलन से भी रू-ब-रू कराता है। यह पर्व श्रावण मास में इसलिए होता है क्योंकि इस मास में चारों ओर हरियाली छाई रहती है और दाम्पत्य जीवन में भी हरियाली कायम रहे और महादेव व माता पार्वती का आशीर्वाद बना रहे इसलिए यही मास सबसे सर्वोत्तम माना गया है।

सीता की तरह ही माता गौरी को भी मिथिला की ही पुत्री माना जाता है :
सीता की तरह ही माता गौरी को भी मिथिला की ही पुत्री माना जाता है। महापर्व के अंतिम दिन श्रावण शुक्ल तृतीया को नवविवाहिता के पति का ससुराल में होना अनिवार्य होता है। इस दिन विधकरी द्वारा नवविवाहिता की पति की मौजूदगी में नवविवाहिता के घुटने में टेमी दागती है। टेमी दागने के समय नवविवाहिता का पति अपनी पत्नी की आंख पान के पत्ते से बंद कर देता है। टेमी दागने के दौरान निकलने बाले फोका को लेकर भी कई किवदंतियां हैं। मान्यता है कि जिस नवविवाहिता को जितना बड़ा फोका निकलेगा, उसका सुहाग उतना मजबूत होगा। महिला पंडित नहीं रहने पर आसपास की कोई दादी, काकी, बुआ आदि ही प्रतिदिन नवविवाहिताओं का पूजा कराती हैं। विश्व स्तर पर महिला सशक्तिकरण की आज बात की जा रही है लेकिन मिथिला में महिला हमेशा सशक्त रही हैं।
Maurya News18 Ranchi.

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