- इस वर्ष अबतक असमय वर्षा होने से रबी फसलों की खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है
- ऐसी विषम परिस्थिति राज्य के विभिन्न हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण बनी है
रांची । विगत 10 वर्षों के दौरान झारखंड राज्य में मौसम की स्थिति विशेष रूप से वर्षा का वितरण और देर से वर्षा की शुरुआत ने किसानों को देर से यानी खरीफ फसलों के मामले में जून के बजाय जुलाई माह में खेत की तैयारी फसल लगाने को मजबूर किया है। जिससे रबी फसलों का आच्छादन प्रभावित होता है। जबकि इस वर्ष अबतक असमय वर्षा होने से रबी फसलों की खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है। ऐसी विषम परिस्थिति राज्य के विभिन्न हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण बनी है। कृषि विज्ञानियों एवं राज्य सरकार को इस स्थिति में रबी फसलों के आच्छादन बढ़ाने की इस दिशा में विशेष गौर करने और उपयुक्त व्यावहारिक समाधान सुझाने एवं रणनीति बनाने की जरूरत है। उक्त जानकारी कृषि विज्ञानी एवं बीएयू के पूर्व डीन एग्रीकल्चर डा एके सरकार ने राज्य में बदलते मौसम के परिवेश में सुधारात्मक उपायों पर सुझाव साझा की।
प्रदेश में सिंचाई की सीमित उपलब्धता :
डा सरकार बताते हैं कि हाल में बीएयू के 42 वीं शोध परिषद की बैठक में राज्य के वर्षा सिंचित क्षेत्रों में रबी फसलों जैसे गेहूं, जौ, दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती में चुनौती और उनके सुधारात्मक उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई। प्रदेश में सिंचाई की सीमित उपलब्धता (11 से 15 प्रतिशत मात्र) है। खरीफ सीजन में खेती का 70 प्रतिशत क्षेत्र धान फसल के अधीन है। जबकि रबी सीजन में अधिकांश भूमि (विशेषकर ऊपरी और मध्यम भूमि) परती रहती है। जिसकी मुख्य वजह धान फसल की देर से बुआई रोपाई और फसलों (मुख्य रूप से धान) की देर से कटाई है। ऐसी भूमि में धान एवं अन्य खरीफ फसल की कम अवधि वाली उन्नत किस्मों को बढ़ावा देकर रबी फसलों का आच्छादन बढाया जा सकता है। रबी सीजन में धान की खेती के बाद करीब 14 लाख हेक्टेयर परती भूमि को उन्नत फसल प्रौद्योगिकी (विशेषकर कम अवधि एवं सिंचाई वाली दलहनी एवं तेलहनी फसल) से आच्छादित कर समाधान संभव होगा। बदलते मौसम के परिवेश में खेतों में मल्चिंग तकनीक, जैविक खाद, हरी खाद, फसल अवशेषों का पुनर्चक्रण, प्राकृतिक खेती, वर्मी कम्पोस्टिंग द्वारा मिट्टी में कार्बनिक कार्बन के प्रयोग को सशक्त बनाने पर विशेष जोर देना होगा।
खेती के लिए मिट्टी और जल संरक्षण की आवश्यकता :
रबी सीजन में दलहन, तिलहन, सब्जियों और आसानी से उगाई जाने वाली फसलों को बढ़ावा देना होगा। दलहनी फसल की खेती में राइजोबियम कल्चर के प्रयोग, अम्लीय मिट्टी में चूने डोलोमाइट का उपयोग, फसल उत्पादन में 75 प्रतिशत नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरक तथा 25 प्रतिशत जैविक खादों का संतुलित प्रयोग तथा जल एवं पोषक तत्वों के उपयोग दक्षता को बढ़ाने के उपाय पर ध्यान देने की आवश्यकता है। धान की खेती के बाद रबी फसलों की खेती के लिए मिट्टी और जल संरक्षण की आवश्यकता है। रबी फसल की खेती में सफलता के लिए बंजर भूमि में बेहतर आच्छादन के लिए विशेष अभियान शुरू करने की आवश्यकता है। डा सरकार ने सुझाव दिया कि प्रदेश में फसलों के आच्छादन की सफलता हरी खाद, दलहनी एवं तिलहनी फसलों की उन्नत बीजों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। मिट्टी के कटाव पर नियंत्रण, सिंचाई की व्यवस्था, मिट्टी के नुकसान की जांच, मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों में सुधार आदि पर विशेष ध्यान में रखना होगा।