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- मानसून की बेरुखी पर बीएयू के विज्ञानियों ने दी सलाह
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रांची : राज्य में लगातार दूसरे वर्ष मानसून की बेरुखी से चिंतित किसानों के लिए कृषि विज्ञानियों ने बिना बिचड़ा ही धान की सीधी बुआई करने को कहा है। Birsa Agriculture university Ranchi के कुलपति सह धान विशेषज्ञ डा. ओंकार नाथ सिंह ने चिंताजनक वर्षा की स्थिति में राज्य के किसानों को ऊपरी (टांड़) एवं मध्यम भूमि (दोन 3) में कम अवधि (100-110 दिनों) की अवधि वाली सूखा रोधी धान किस्मों जैसे बिरसा विकास धान 109, बिरसा विकास धान 110, बिरसा विकास धान 111, वंदना, अंजली, ललाट, नरेंद्र 97 एवं आइआर 64 (डीआरटी 1) की सीधी बुआई करने की सलाह दी है। कहा कि यह तकनीक कम पानी वाले खेतों में बिना कीचड़ और बिना बिचड़ा ही धान की खेती में उपयोगी साबित होगी और उपज भी रोपाई विधि के समान ही होगी। मजदूरों की कमी एवं वर्षा की असमानता की स्थिति में पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों में भी एरोबिक विधि से धान की खेती प्रचलित हो रही है। बीएयू के तीन प्रायोगिक शोध प्रक्षेत्रों में इस विधि से 23 दिन पहले लगाई गई धान फसल लहलहा रही है। विज्ञानियों के मुताबिक फसल प्रदर्शन भी काफी बेहतर है। इन शोध प्रक्षेत्रों में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद से प्राप्त देश भर के 150 से अधिक उन्नत धान किस्मों का परीक्षण किया जा रहा है।
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धान की सीधी बुआई की एरोबिक विधि में पानी की कम होती है जरुरत :
परियोजना अन्वेषक (आइआरआरआइ) डा. कृष्णा प्रसाद बताते है कि धान की सीधी बुआई की एरोबिक विधि में जरुरत के मुताबिक सिंचाई और खेतों में जलजमाव नहीं रखा जाता है। जबकि दूसरी विधि में खेतों में पानी बांध कर रखा जा सकता है, इससे खर-पतवार में आसानी होती है। नमी होने पर खेत की जुताई कर अनुशंसित धान बीज की बुआई सीड एंड फर्टिलाइजर सीड ड्रील से करनी चाहिए। सीड ड्रील नहीं होने पर छिटकवां विधि से बुआई की जा सकती है। एक एकड़ में 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। खाद की मात्रा का प्रयोग 50:25:25 किलो नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति एकड़ की दर से की जाती है। खर-पतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना होता है। इसलिए दो से तीन बार निकाई गुडाई या बुआई के दो-तीन दिनों के बाद खर-पतवार नाशी दवा प्रेटिलाक्लोर (4 मिली प्रति लीटर पानी में) अथवा पेंडीमिथेलीन दवा (एक लीटर प्रति 120 लीटर पानी में घोलकर) का दो तीन बार छिड़काव करना चाहिए।