– जिन क्षेत्रों में वृक्षों की सघनता होती है, वहां तापमान अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम पाया जाता है : जयंत
– सड़क चौड़ीकरण और विकास के नाम पर कई पुराने मोटे फलदार पेड़ों को काट दिया, ये पेड़ कई जीव जंतुओं का बसेरा होता है और ताप को भी संतुलित रखता है : देवेंद्र
– यदि ईश्वर ने हमें जीवन दिया है तो हमें उसका सदुपयोग करना चाहिए : निखिल
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रांची : शहरीकरण के नाम पर हम अंधे रेस में दौड़ लगा रहे हैं। हमने रांची (Ranchi) की खूबसूरती बिगाड़ कर रख दी है, यहां की हरियाली लगातार सिमट रही है। नतीजतन, रांची जैसा हिल स्टेशन अब हीट स्टेशन में कंवर्ट हो रहा है। यहां अप्रैल माह से ही तपती गर्मी के लक्षण शुरू हो जाते हैं और मई आते आते तो स्थिति भयावह हो जाती है हीटवेव का असर शुरू हो जाता है। अब भी नहीं सुधरे तो यहां के लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा। जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है और कई जगहों को ड्राई जोन तक घोषित कर दिया गया है। एक सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि रांची का तापमान प्रति दशक .33 प्रतिशत बढ़ रहा है।
इन पर्यावरण मित्रों से लें सीख :
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पर्यावरण मित्र जयंत नाथ शाहदेव (Jayant Nath Shahdev) ने एमबीए (MBA) की पढ़ाई करने के बाद कई संस्थानों में काम किया लेकिन अपनी जमीन से जुड़े रहे और वर्ष 1986 से लगातार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्यरत हैं। अपने दाडी गांव में उन्होंने विलेज रिसोर्ट (Village Resort) को डेवलप किया है। मजेदार बात यह है कि उनके वनक्षेत्र के समीप ही ककरिया रोड के मुकाबले दाडी स्थित वनक्षेत्र का तापमान 4 से 5 डिग्री तक कम रहता है। अपनी 40 एकड़ की जमीन में वन क्षेत्र को डेवलप कर इन्होंने समाज के वैसे लोगों के समक्ष मिशाल कायम की है जिन्होंने आधुनिकीकरण के नाम पर जंगल को उजाड़ दिया है। इस वन क्षेत्र में उन्होंने मिक्स्ड प्लांटेशन (Mixed Plantation) किया है। जिसमें अधिकतर पौधे फलदार लगाए गए हैं। इस वन क्षेत्र से धरती की आंचल को हरा भरा बनाने के साथ साथ जयंत नाथ शाहदेव अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। महोगनी, आम, लीची, पीपल, नीम, जामून समेत कई अन्य प्रजातियों के पौधे लगाकर इस पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया है।
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जयंत नाथ शाहदेव ने बताया कि शुरूआती दिनों उन्होंने करीब तीन एकड़ जमीन में यूकोलिप्टस के पौधे लगाए। बाद में जब पता चला कि ये पौधे पर्यावरण के लिए खतरनाक है और बड़ी मात्रा में जलशोषण करते हैं तो इसे काटकर वहां अन्य प्रजाति के पौधे लगाए। इस कार्य में उनका साथ उनकी धर्मपत्नी रचना शाहदेव (Rachna Shahdev) भी देती हैं। रचना शाहदेव लापुंग प्रखंड (Lapung Block) के कई गांवों में जाकर पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं।
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पिछले 20 वर्षों से ओरमांझी प्रखंड (Ormanjhi Block) के हसातु गांव की पहाड़ी पर देवेंद्रनाथ ठाकुर (Devendra Nath Thakur) पर्यावरण संरक्षण कर रहे हैं। देवेंद्रनाथ ने अपनी 7 एकड़ जमीन जो कि पूरी तरह से पहाड़ी क्षेत्र है, वहां कई फलदार प्रजातियों के पौधे लगाए हैं। साथ ही 10 डिसमिल जमीन पर पलाश के पेड़ पर लाह की खेती भी शुरू कर दी है। इससे उन्हें आर्थिक लाभ भी मिल रहा है। आर्थिक लाभ मिलने के बाद उन्होंने धीरे धीरे लाह की खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया और आज करीब 2329 पलाश के पेड़ों को न सिर्फ संरक्षित किया बल्कि इसमें रंगीनी और सेमिलता के पौधे पर कुसुमी लाह की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। साथ ही क्षेत्र के पेड़ पौधों की रक्षा भी कर रहे हैं।
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देवेंद्रनाथ का कहना है कि हमारे आसपास के क्षेत्रों से सड़क चौड़ीकरण और विकास के नाम पर पुराने मोटे फलदार पेड़ों को काट दिया गया है। ये पेड़ कई जीव जंतुओं का बसेरा होता है और ताप को भी संतुलित रखता है। यही कारण है कि हमने पहाड़ियों पर ही ऐसे पौधे लगाने शुरू कर दिए। कहा कि बरसात के दिनों जंगल में मिट्टी कटाव की समस्या रहती थी। लेकिन पूर्व स्वाइल साइंटिस्ट परशुराम मिश्रा से मिली सलाह के बाद उन्होंने वर्षा के तेज बहाव से बचाने के लिए पेड़ की जड़ों में ट्रेंच बनाना शुरू किया। ऐसे में पेड़ पौधे पानी की तेज बहाव से बच गए और आज 7 एकड़ में सघन जंगल तैयार है। देवेंद्र ने कहा कि इस वन क्षेत्र में आने के बाद ही पता चल जाता है कि बाहरी तापमान के मुकाबले यहां का तापमान काफी कम है।
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रांची में कल्पतरु मित्र के नाम से मशहूर निखिल मेहुल (Nikhil Mehul) युवा हैं और पिछले पांच वर्षों से कल्पतरु पौधे के अस्तित्व को बचाने की जुगत में लगे हैं। रांची यूनिवर्सिटी (Ranchi University) के हास्टल में रहकर इन्होंने कल्पतरु के बीज को डेवलप कर पौधा बनाने की तकनीक सीखी और आज राष्ट्रपति भवन, रांची स्थित राजभवन से लेकर आरयू कैंपस और राज्य के कई जिलों में इन्होंने इस पौधे की संरक्षण की दिशा में कार्य किया है। उनका लक्ष्य 10 हजार कल्पतरु के पौधे लगाने का लक्ष्य है। जिसे पूरा करने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं।
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निखिल कहते हैं कि जहां कहीं भी यह पेड़ होता है वहां का जलस्तर मेंटेन रहता है। इसलिए रांची जैसे पठारी क्षेत्रों में इस पौधे को बड़ी संख्या में लगाने की आवश्यकता है। निखिल ने कहा कि कल्पतरु मूल रूप से अफ्रीकी पौधा है। हमारे देश इसे देववृक्ष, कल्पवृक्ष, पारिजात आदि नामों से जाना जाता है। काफी अनुसंधान के बाद उन्हें पता चला कि कल्पवृक्ष जो 2017 तक की रिपोर्ट के अनुसार दुर्लभ स्थिति में था और पूरे देश केवल 9 वयस्क कल्पवृक्ष मौजूद थे, जिसमें 3 पेड़ डोरंडा रांची में हैं। अन्य सभी अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा तट, कर्नाटक में हैं। इसके बाद उन्होंने इस प्रजाति को बचाने के लिए अभियान शुरू किया और आज लगातार स्थिति में सुधार हो रहा है।
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निखिल मेहुल ने अब तक झारखंड राजभवन में 4, पहाड़ी मंदिर परिसर में 3, जगरनाथ मंदिर परिसर में 2 और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी युनिवर्सिटी में 3 कल्पवृक्ष के पौधे लगाए हैं। इसके अलावे निखिल ने कई पर्यावरण प्रेमियों के बीच पौधे का वितरण भी किया है। निखिल का मानना है कि यदि ईश्वर ने हमें जीवन दिया है तो हमें उसका सदुपयोग करना चाहिए।