- शहर के किशोरगंज स्थित 1920 में स्थापित महाविद्यालय में प्रभारी प्राचार्य व एकमात्र संस्कृत शिक्षक के भरोसे 100 छात्र छात्राओं की चल रही है पढ़ाई
रांची : एक ओर जहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर इस प्रणाली की जिस विषय से शुरुआत होती है उसकी पढ़ाई को नजरअंदाज किया जा रहा है। हम बात कर रहे हैं देवभाषा संस्कृत की। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद से अब तक झारखंड सरकार ने एक अदद संस्कृत युनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं कर पाई है। जिस कारण रांची, देवघर और चाईबासा में संचालित संस्कृत महाविद्यालयों में न तो इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया जा सका है और न ही शिक्षकों और कर्मियों की नियुक्ति की गई है। लिहाजा, पढ़ाई बाधित है और आनन फानन के सहारे आचार्य की डिग्री बांटी जा रही है। शहर के किशोरगंज स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय की कमोबेश यही स्थिति है। यहां एक प्राचार्य के अलावे एकमात्र शिक्षक के भरोसे 100 छात्र छात्राओं को संस्कृत भाषा की शिक्षा दी जा रही है। जबकि इस महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 1920 में हुई थी।
बताया गया कि किसी जमाने में यह महाविद्यालय समृद्ध हुआ करता था और वर्तमान में स्थिति यह है कि इसकी संबद्धता रांची यूनिवर्सिटी या फिर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी रांची से न होकर विनोबा भावे यूनिवर्सिटी हजारीबाग से है। आलम यह है कि देवघर और चाईबासा स्थित संस्कृत महाविद्यालयों की भी संबद्धता विनोबा भावे युनिवर्सिटी हजारीबाग से ही है। बार बार मांग पत्र सौंपे जाने के बाद भी न तो राजधानी में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हो सकी और न ही शहर के एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय को कोई सुविधा ही मिल पाई है। यद्यपि 27 अगस्त 2023 को जनपद संस्कृत सम्मेलन में सात सूत्रीय मांग पत्र से सरकार का ध्यान आकृष्ट तो कराया गया लेकिन फलाफल कुछ भी हासिल नहीं हो सका है।
इन विषयों की होती है पढ़ाई :
राजकीय संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत के साथ साथ वेद, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन आनर्स की डिग्री दी जाती है जबकि आवश्यक विषयों में हिंदी, इतिहास और अंग्रेजी भाषा की भी पढ़ाई होती है। इन विषयों को पढ़ाने के लिए प्राचार्य के अलावे सिर्फ संस्कृत भाषा के ही प्राध्यापक हैं। जो कि सरकारी व्यवस्था की पोल खोलती नजर आती है। राज्य गठन के बाद से एक भी शिक्षक या कर्मी की नियुक्ति नहीं हुई है, ऐसे में पूरे राज्य में आचार्य की पढ़ाई बंद हो चुकी है। आचार्य करने के लिए राज्य के छात्रों को वाराणसी, दरभंगा, इलाहाबाद का रुख करना पड़ता है। पूरे राज्य में तीन अंगीभूत संस्कृत महाविद्यालय संचालित हैं जिसमें रांची के अलावे देवघर और चाईबासा में है जबकि देवघर, गिरिडीह और डाल्टेनगंज एक-एक एफिलिएटेड कालेज हैं। यहां उप-शास्त्री तक की पढ़ाई होती है जबकि आचार्य या शोध कार्य की पढ़ाई के लिए छात्र छात्राओं को अन्य राज्यों का रुख करना पड़ता है। आलम यह है कि आज संस्कृत जैसी पौराणिक भाषा झारखंड में दम तोड़ रही है। देव भाषा संस्कृत के उन्नयन के लिए संयुक्त बिहार के समय में खोले गए स्कूल-कालेज आज बंद होने के कगार पर हैं।
इन क्षेत्रों में हैं संस्कृत की संभावनाएं :
- – भाषा विकास के क्षेत्र में संस्कृत विषय से जुड़ी नौकरी
- – पुराने विज्ञानी शास्त्र मसलन आयुर्वेद, योग और ज्योतिष की जानकारी के लिए संस्कृत आवश्यक
- – पब्लिक सर्विस कमीशन, शिक्षक, योगाचार्य, ज्योतिषाचार्य व आयुर्वेदाचार्य की नियुक्ति में प्राथमिकता
- – भारतीय ज्ञान प्रणाली को लागू करने के लिए लिए संस्कृत विशेषज्ञों की आवश्यकता
- – भाषाई बारीकियों से अवगत होने के लिए संस्कृत विशेषज्ञों की आवश्यकता
- – अन्य भाषाओं की त्रुटियों और गुत्थियों को सुलझाने के लिए संस्कृत विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।
संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ व्यापक प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है। संस्कृत भाषा रोजगारपरक भाषा में से एक है, जिसका लंबा इतिहास है। मगर शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए शिक्षकों का न होना अपने आप में हास्यास्पद स्थिति को उत्पन्न करता है।
: आचार्य डा. शैलेश कुमार मिश्रा, संस्कृत प्राध्यापक, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, रांची।
शिक्षकों के अभाव में इस महाविद्यालय में आधा दर्जन से अधिक विषयों की पढ़ाई लगभग बंद है। यहां वेद, आगम, व्याकरण, ज्योतिष जैसे विषयों की पढ़ाई बंद है जबकि इन विषयों में शोध कार्यों की अपार संभावनाएं हैं। शिक्षकों की कमी के कारण इन विषयों में छात्र छात्राओं का नामांकन नहीं लिया जा रहा है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में इन विषयों के छात्र नामांकन कराने आते हैं।
: डा. राम नारायण पंडित, प्राचार्य, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, रांची।
Maurya News18 Ranchi.