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लोकपर्व मधुश्रावणी प्रारंभ, पहले सावन में नई दुल्हन रखती हैं उपवास 

– नवविवाहिताएं इस व्रत के दौरान अरवा भोजन ग्रहण कर पूजन आरंभ करती हैं

रांची : मिथिलांचल (Mithila) की नवविवाहित महिलाओं का प्रसिद्ध लोकपर्व मधुश्रावणी पर्व गुरूवार से शुरू हो गया। इस व्रत में मुख्य रूप से गौरी और भगवान शिव की पूजा की जाती है। व्रती महिलाएं एक दिन पहले से बगीचे से फूल लोढ़ना प्रारंभ करती हैं। इस दिन वे स्नान कर ससुराल से आए रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषण पहनकर नाग देवता की पूजा-अर्चना करती हैं। यह पूजा सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया यानी 7 अगस्त को पूरा होगा। नवविवाहिताएं इस व्रत के दौरान अरवा भोजन ग्रहण कर पूजन आरंभ करती हैं। यह व्रत नव विवाहिता बड़े ही धूमधाम से करती हैं। पति की लंबी उम्र के लिए किए जाने वाले यह व्रत धैर्य और त्याग का प्रतीक है। पूरे 14 दिन चलने वाले इस व्रत में बिना नमक का भोजन खाया जाता है। इस पूजा में पंडितों की भूमिका भी महिलाएं ही अदा करती हैं। इस अनुष्ठान के पहले और अंतिम चरण में बड़े विधि-विधान से साथ पूजा की जाती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान माता पार्वती की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। इसके साथ ही इस पर्व की अनोखी परंपरा भी मिथिला में देखने को मिलती है। नई दुल्हन जो पहले सावन में पति के लिए उपवास करती है वे उनकी अग्निपरीक्षा भी लेती हैं।

अग्निपरीक्षा में दुल्हन का जलाया जाता है घुटना :
बिहार के मिथिलांचल में प्यार का पता लगाने के लिए एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है। जिसमें महिला को अग्निपरीक्षा देनी होती हैं। जिसमें महिला का घुटना में दीया की गर्म बाती यानी टेमी दागा जाता है। पति अपनी पत्नी के घुटने पर पूजा घर में रखे गए दीपक की बाती से प्यार के साथ उसका घुटना जलाता है। इससे दोनों का करुण सार देखने को मिलता है। जब महिला को जलाया जात है वह उफ्फ तक नहीं करती। ऐसा माना जाता है कि इस परीक्षा में विवाहिता के घुटने में जितना बड़ा फफोला पड़ता है। पति-पत्नी का प्यार उतना ही गहरा होता है।

मिथिला का लोकपर्व मधुश्रावणी :
मिथिला क्षेत्र के आस्था का पर्व मधुश्रावणी पर्व 25 जुलाई से 7 अगस्त तक होगा। झारखंड मिथिला मंच के जानकी प्रकोष्ठ की महासचिव निशा झा ने बताया कि यह पर्व खासकर नवविवाहिता अपने वैवाहिक जीवन और पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। नवविवाहिता पूरे 14 दिन तक पूरे निष्ठा के साथ सात्विक जीवन बिताती हैं। इस 14 दिन बिना नमक का खाना वो भी एक बार ही खाएंगी। हटिया निवासी कौशल झा की पुत्री जयंती झा अपने आवास में पूजा कर रही हैं। जानकारी देते जानकी प्रकोष्ठ की महासचिव निशा झा ने बताया कि प्रतिदिन अपनी सहेलियों के संग संध्याकाल बाग में जाकर फूल लोढ़ी करती हैं फिर पूजा करती हैं। यह पर्व नवविवाहिता अपने मायके में करती हैं और इस दौरान उनके ससुराल से भार के साथ साथ खाने पीने के सामान और कपड़ा भी ससुराल से ही आता है।

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