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…ताकि हर हाल में स्कूलों से अनुशासनहीनता को दूर किया जा सके

  • ऐसा भी नहीं है कि स्कूल की बदनामी सिर्फ छात्र छात्राओं के कारण होती है, कुछ ऐसे भी शिक्षक होते हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा को तार तार भी करते रहे हैं

रांची : गत दिनों डीएवी गांधीनगर के एक शिक्षक के द्वारा कुछ छात्रों की पिटाई का मामला जहां गरमाने लगा है, तो दूसरी ओर कुछ छात्र छात्राओं की अनुशासनहीनता के कारण कई स्कूल बदनाम भी होते रहे हैं। कई ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं जब छात्र छात्राओं के द्वारा शिक्षकों पर फब्तियां कसी जाती हैं और गाहे बगाहे उन्हें बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है। ऐसा भी नहीं है कि स्कूल की बदनामी सिर्फ छात्र छात्राओं के कारण होती है, कुछ ऐसे भी शिक्षक होते हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा को तार तार भी करते रहे हैं। इसी क्रम में शहर के कुछ शिक्षकों से बातचीत की गई, जिसमें यह पूछने का प्रयास किया गया कि यदि कुछ विद्यार्थियों की बदमाशी के कारण स्कूल की छवि बिगड़ती है तो ऐसे विद्यार्थियों से मिलने वाली चुनौतियों से कैसे निपटते हैं। साथ ही अभिभावकों की नाराजगी को भी दूर करने का किस तरह का प्रयास किया जाता है। जिस पर शिक्षकों ने मनोविज्ञानी तरीका अपनाए जाने और कुछ शिक्षकों ने तो सख्ती बरते जाने की भी सलाह दी ताकि हर हाल में अनुशासनहीनता को दूर किया जा सके…

शिक्षकों ने ये कहा :

हरेक स्कूल में कुछ ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो अनुशासनहीन होते हैं। ऐसे बच्चों के कारण माहौल थोड़ी देर के लिए खराब जरूर होता है लेकिन ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए पैरेंट्स टीचर मीट में चर्चा होती है। बच्चों के साथ साथ अभिभावकों की भी काउंसिलिंग होती है। अनुशासनहीन बच्चों को पठन पाठन की ओर उन्मुख करने के प्रयास किए जाते हैं।
: संजीत कुमार मिश्रा, प्राचार्य, एसआर डीएवी पुंदाग।

सीबीएसई व सरकारी गाइडलाइन के अनुरूप ही बच्चों की पढ़ाई कराई जाती है। कई ऐसे बच्चे भी होते हैं जो बेपटरी हो जाते हैं। उन्हें समझाने का प्रयास किया जाता है लेकिन जब मामला बिगड़ने लगता है तो उसे टीसी देने और अभिभावकों को मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की जाती है ताकि हर हाल में अनुशासनहीनता को दूर किया जा सके।
: दिलीप कुमार झा, प्राचार्य, जीएंडएच हाईस्कूल, रांची।

आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि स्कूल में कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो चर्चा में बने रहने के कारण बदमाशी का भी सहारा लेते हैं। ऐसे बच्चों की अच्छाई को पहले सामने लाया जाता है, साथ ही उनकी कमियों को गिनाया जाता है ताकि मनोविज्ञानी तरीके से ऐसे बच्चों को पटरी पर लाया जा सके।
: रश्मि श्रीवास्तव, शिक्षिका, सुरेंद्रनाथ सेंटेनरी स्कूल, कोकर रांची।

स्कूल में बच्चों की दिनचर्या के साथ साथ पढ़ाई बेहतर हो, इस दिशा में शिक्षकों को सतर्क रहना चाहिए। सरकारी गाइडलाइन का अनुपालन तो करना ही चाहिए। साथ ही बच्चों के भविष्य के लिए सख्ती भी जरूरी है। यह भी जरूरी नहीं है कि हर समय अभिभावक ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करे, इससे बच्चों का मनोबल बुरी संगतों की ओर बढ़ता है।
: नसीम अहमद, शिक्षक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय।

अक्सर देखा गया है कि स्कूलों में कभी शिक्षक तो कभी बच्चे गलती कर बैठते हैं। हर बार जांच कमेटी भी बनती है लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं होता है। कई मामलों में मुझे भी कमेटी का सदस्य बनाया गया है। हर बार रिपोर्ट जमा होने के बाद शिक्षा विभाग के द्वारा समुचित कार्रवाई नहीं की जाती है। जिससे न तो कोई उदाहरण ही तय हो पाता है और न ही स्कूलों में कोई सख्त संदेश जा पाता है कि गलती करने पर सख्त सजा भी मिल सकती है।
: अजय राय, अध्यक्ष, झारखंड अभिभावक संघ रांची।

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