लोकतंत्र पर सवाल — भरोसा किस पर?
लोकतंत्र के महापर्व में सच्चे उम्मीदवारों की पुकार
आलेख ।
आज जब चुनावी रणभेरी बज चुकी है, तब सबसे बड़ी चुनौती है — सच्चे, दयालु, अभिमान-शून्य, परोपकारी और सच्चे लोगों को राजनीति में आगे लाना।
दुर्भाग्य यह है कि ऐसे गुणी लोग राजनीति से दूर रहना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि अब राजनीति सेवा नहीं, स्वार्थ का अखाड़ा बन गई है।

लेकिन अब यही सोच बदलनी होगी।
देश आज भी जिनके सहारे चल रहा है, वे यही गुणी और निःस्वार्थ लोग हैं — जिनमें अनेक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।
भ्रष्टाचार हर स्तर पर कैंसर की तरह फैल चुका है, परंतु अगर ऐसे सच्चे, कर्मनिष्ठ और परोपकारी लोग अपने-अपने स्तर पर न लगे रहते,
तो देश की जो भी विकास यात्रा आज दिखाई दे रही है, वह रुक चुकी होती।
दरअसल, ऐसे गुणी लोगों के बदौलत ही देश आज तक टिका हुआ है,
अन्यथा यह राष्ट्र कब का रसातल में जा चुका होता।
विकास की यह धीमी रफ्तार भी इन्हीं ईमानदार लोगों के बल पर संभव है।
यदि ऐसे गुणी और सच्चे लोग राजनीति में सक्रिय रूप से बने रहते,
तो आज विकास की यह धीमी चाल तेज़ रफ्तार में बदल चुकी होती,
भारत पुनः ‘विश्व गुरु’ बन गया होता,
और हर वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में हमारे देश के लोग नोबल पुरस्कार प्राप्त कर रहे होते।
अब प्रश्न यह है —

क्या घन-बल, बाहु-बल और पैसे के सहारे खड़े हुए नेता वास्तव में भ्रष्टाचार मिटा सकते हैं?
कितने विधायक हैं जो अपने विधायक फंड में कमीशन नहीं लेते?
कितने नेता चुनाव जीतने के बाद लिखित में देंगे कि “मैं किसी योजना में कमीशन नहीं लूंगा”?
दुर्भाग्य से, ऐसी गारंटी कोई राजनीतिक दल भी नहीं दे रहा है।
अब वक्त है कि जनता और समाज मिलकर ऐसा विजन और माहौल तैयार करें —
जिसमें सच्चे और निःस्वार्थ लोग राजनीति में आने को प्रेरित हों।
दलों पर दबाव बने कि वे टिकट केवल ईमानदार और सेवा-भावी लोगों को दें। और जनता ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे, जो चरित्र और कर्तव्य से मजबूत हों, न कि धन और प्रचार से।
राजनीति धंधा या व्यवसाय नहीं है, बल्कि समाजसेवा और देशसेवा का माध्यम है।
समाजसेवा करने के लिए टिकट की होड़ में शामिल होने वाले या टिकट खरीदने वाले उम्मीदवार से
क्या हम बेहतर शासन प्रणाली की उम्मीद कर सकते हैं?
अगर राजनीति सेवा नहीं, बल्कि सौदेबाज़ी बन गई, तो लोकतंत्र का नैतिक आधार ही टूट जाएगा।
विधानसभा चुनाव 2025 केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं,
बल्कि लोकतंत्र के आत्मशुद्धि और सदाचार के पुनर्जागरण का अवसर है।
जब सच्चे लोग आगे आएंगे, जनता उनका साथ देगी
तभी भ्रष्टाचार मिटेगा और लोकतंत्र मजबूत बनेगा।”
अमरीष कुमार
सामाजिक चिंतक, खगड़िया, बिहार