आलेख सुरेंद्र किशोर के हैं, आप देश के जानेमाने लेखक,रचनाकार,वरिष्ठ पत्रकार हैं ।
सुरेंद्र किशोर, पटना, बिहार।
मौजूदा चुनाव अभियान के दौरान मीडिया तथा अन्य स्त्रोतों से राज्य भर से मिल रही खबरों के अनुसार बिहार के जरूरतमंद लोगों में मोदी-नीतीश के प्रति जैसा सकारात्मक रुख देखा जा रहा है,वह विरल है।

मैं सन 1967 से ही चुनावों को करीब से देखता और उसमें पहले कार्यकर्ता व बाद में पत्रकार के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहा हूं।
विकास-कल्याण के काम के कारण किसी सत्ताधारी नेता के प्रति लोगों का
ऐसा सकारात्मक रुख मैंने पहली बार देखा।वह भी बीस साल तक सत्ता में रह चुकने के बाद भी।
सन 1977 की बात है।पटना के काॅफी हाउस में मैं नीतीश कुमार के
साथ बैठा हुआ था।तब मैं दैनिक ‘आज’ में काम कर रहा था।
नीतीश विधान सभा का चुनाव हार चुके थे।
पर,उनका तभी का आत्म विश्वास तो देखिए !
हम दो ही लोग बैठे थे।
तब के मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर की कार्य शैली की बात चली तो मैंने कहा कि कर्पूरी जी से जैसी उम्मीद थी,वह पूरी नहीं हो रही है।
उस पर नीतीश कुमार ने टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा–
‘‘सुरेंद्र जी ,मैं एक दिन मुख्य मंत्री जरूर बनूंगा।पर,यह भी जान लीजिए कि मुख्य मंत्री बनकर मैं अच्छा काम करूंगा।’’(मुझे तब आश्चर्य हुआ यह सुनकर कि ये मुख्य मंत्री कैसे बन जाएंगे !
लगा कि यह तो बड़बोलापन ही है।)
पर, यह तो होना था और हो ही गया।
नीतीश जी के लंबे शासन काल का आज मेरा आकलन यह है कि अच्छा ही नहीं बल्कि नीतीश जी ने इस बीच बहुत से अच्छे काम किये।अभी कर ही रहे हैं।हालांकि इतने ईमानदार नेता से मुझे दो अन्य कामों की भी उम्मीद थी।पर,वे नहीं कर सके।वह काम भी कर देते तो देश की आम जनता ही नीतीश को प्रधान मंत्री बनाने की मांग करती।
इन्हें जोड़-तोड़ के कारण ‘‘पलटू राम’’ नहीं बनना पड़ता।वे दो काम थे–तरह- तरह के भ्रष्टाचारियों,अपराधियों और जेहादियों के प्रति निर्मम होने का काम।
अब थोड़ा पीछे चलिए
साठ के दशक की बात है।नीतीश कुमार पटना इंजीनियरिंग काॅलेज में पढ़ते थे,पर उन्हें हाॅस्टल में जगह तब तक नहीं मिली थी।इसलिए वे मुसल्लहपुर हाट के कृष्णा लाॅज में रहते थे।
मेरा छोटा भाई नागेंद्र पटना लाॅ कालेज का छात्र था और संयोग से नीतीश जी के बगल वाले कमरे में रहता था।
उन दिनों मैं डा.लोहिया से प्रभावित होकर उनकी पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया था।देश भर में भ्रमण करता रहता था।जब पटना आता था तो नागेंद्र के साथ ही टिकता था।
वहां नीतीश जी से मेरी लंबी बातचीत होती थी।
उनका झुकाव छात्र जीवन से ही डा.लोहिया की तरफ था।
उसके बाद के वर्षों में भी नीतीश जी के साथ मेरा ढीला -ढाला संबंध बना रहा।जब मुख्य मंत्री बने तो मैं उनके अच्छे कामों की चर्चा अपने अखबारी लेखों और रपटों में करने लगा।
मेरे पीछे में नीतीश जी कहा करते थे–‘‘सुरेंद्र जी बिना फीस के मेरे वकील हैं।’’
यह सही बात है।मैं कभी किसी सत्ताधारी नेता से फीस यानी पद की मांग नहीं की।लालू प्रसाद और नीतीश कुमार मेरी इस बात की गवाही देने के लिए आज भी हमारे बीच मौजूद हैं।
मेरी नजर में हमेशा बिहार की जनता रहती है जिसे बहुत दिनों के बाद नीतीश जैसा एक अच्छा काम करने वाला मुख्य मंत्री मिला था।उनको ताकत पहुंचाना और उनका मनोबल बनाये रखना मैंने अपना कत्र्तव्य समझा ताकि ‘‘जंगल राज’’ की वापसी न हो जाए !
क्योंकि जंगल राज का मैं भी व्यक्तिगत रूप से एक बहुत बड़ा पीड़ित रहा था।
और अंत में
देश के अन्य नेताओं को मोदी-नीतीश से सीखना चाहिए।
(सरकारी तंत्र और अधिकतर नेताओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए तो तानाशाही की जरूरत पड़ेगी।किंतु मोदी-नीतीश की तरह)कम से कम व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार रहिए।परिवारवाद से दूर रहिए।लोगबाग आप पर विश्वास करेंगे।आपकी कुछ कमियों को भी नजरअंदाज करेंगे।
समाज के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर कल्याण-विकास के काम करिए।
मोदी-नीतीश की तरह आपकी भी लोग तारीफ करेंगे।
(साथ का चित्र हमारे पारिवारिक समारोह का है।चित्र में नीतीश जी के पास खड़ा एक व्यक्ति अनौपचारिक रूप से हाथ उठाकर किसी की ओर इशारा कर रहा है।वह मेरे भाई नागेंद्र का चित्र है जो नीतीश जी के साथ कृष्णा लाॅज में रहता था।अब वह इस दुनिया में नहीं रहा।उसका चित्र देखकर मैं भावुक हो जाता हूं।)
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सुरेंद्र किशोर
देश के जाने माने लेखक, रचनाकार, पत्रकार।

