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माता चौक न्यू सिपाही टोला (New Sipahi Tola) के मां दुर्गा मंदिर में खीर का भोग लगाने की है परंपरा…

संगमरमर की मूर्ति की स्थापना के बावजूद, मिट्टी की मूरत बनकर ही होती है मां दुर्गा की महापूजा

पूर्णिया : दुर्गा पूजा (Durga Puja) के अवसर पर यूं तो हर तरफ उल्लास का माहौल होता है। सभी मंदिर व पूजा पंडाल में भक्तों का तांता लगा रहता है। ऐसा ही एक आस्था का केंद्र है पूर्णिया के माता चौक न्यू सिपाही टोला स्थित दुर्गा मंदिर…जिसकी स्थापना वर्ष 2002 में हुई। संपूर्ण परिवेश में मां के इस मंदिर के प्रति सबों में अगाध आस्था है। फलस्वरूप प्रतिदिन भक्तों का तांता तो यहां लगा ही रहता है लेकिन शरदीय नवरात्रि के अवसर पर यहां का अनुष्ठान कुछ अलग ही समां बांधता है। स्थानीय लोगों के बीच यहां की महिमा देखते बनती है। मंदिर में संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है, जिसकी प्राण प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। लेकिन दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां मां दुर्गा की छोटी सी मिट्टी की प्रतिमा अलग से गढ़ी जाती है, जिसे दस दिनों के पूजा अनुष्ठान के बाद विसर्जित कर दिया जाता है। लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इन दस दिनों में यहां मांगी गई कोई भी मुराद खाली नहीं जाती है।

पूजा अनुष्ठान को संपन्न करने के लिए इस मंदिर के पूजा आयोजन समिति के सभी अधिकारी समर्पित भाव से पूजा के महीनों पहले से ही जूटे रहते हैं और अपना भरपूर योगदान देते हैं। साथ ही समाज के हर वर्ग इस पूजा अनुष्ठान के साथ भावनात्मक रूप से जुड़कर अनुष्ठान को संपन्न करते हैं। विगत 14 वर्षों से लगातार इस पूजा समिति के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि आयोजन समिति के सचिव रघुनंदन यादव और संयुक्त सचिव जय हिंद सिंह तथा समिति पूजा समिति के अन्य सभी सदस्य मां की प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही मां के आगमन की प्रतीक्षा में लीन हो जाते हैं। दस दिनों तक चलने वाले मां दुर्गा के इस पूजा अनुष्ठान में समाज के हर वर्ग का जुड़ाव कायम रहता है। विसर्जन के अवसर पर दूर-दूर से लोग मां का आशीर्वाद लेने आते हैं और मां की प्रतिमा का निरंजन करने के लिए मंदिर से नदी के तट तक चलकर जाते हैं, मां को भवानी विदाई देते हैं।

हर बार यही कोशिश होती है कि अनुष्ठान को बेहतर से बेहतर रूप में संपन्न कर सके। वैसे तो इस दूर्गा मंदिर में भव्य मंदिर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थाई रूप से स्थापित है। लेकिन पूजा के समय तत्काल गढ़ी मिट्टी की मूर्ति पर ही पूजा संपन्न होता है। इस बार भी हर बार की तरह भक्तों के दर्शन, पूजन और प्रसाद की पूरी व्यवस्था है। महा अष्टमी के दिन यहां विशेष रूप से खीर का भोग लगाया जाता है, जो आने वाले सभी भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। नवमी पूजा के दिन खिचड़ी महाभोग का आयोजन विराट पैमाने पर किया जाना है। इस बार भी हम सभी भक्तजन मिलकर मां दुर्गा की इस महा पूजा को सफल आयोजन के रूप में संपन्न करेंगे।

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