झारखंड में औषधीय पौधों के व्यावसायिक उत्पादन की व्यापक संभावनाएं : डा. मनीष दास
रांची : झारखंड में औषधीय एवं सुगंधित पौधों के व्यावसायिक उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं। समृद्ध जैव विविधता के कारण इस राज्य में हजारों ऐसी उपयोगी पादप प्रजातियां उपलब्ध हैं जिनकी विज्ञानी ढंग से व्यावसायिक खेती, प्रसंस्करण और विपणन का कार्य किया जा सकता है। उक्त विचार आइसीएआर (ICAR) के औषधीय एवं सगंधीय पादप अनुसंधान निदेशालय, आणंद (गुजरात) के निदेशक एवं परियोजना समन्वयक डा. मनीष दास ने व्यक्त किए।
डा. दास आइसीएआर के सहयोग से बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रांची (Birsa Agriculture University Ranchi) में चल रही औषधीय एवं सगंधीय पौधों संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की प्रगति की मानिटरिंग (Monitoring) के लिए दो दिवसीय दौरे पर रांची आए थे। उन्होंने कहा कि औषधीय और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण एलोवेरा, गिलोय, सर्पगंधा, पिपली, अश्वगंधा और शतावरी जैसी 10-12 फसलों पर बीएयू को अपना शोध प्रयास केंद्रित करना चाहिए। ताकि इन फसलों को व्यवसायिक स्तर पर बढ़ावा देने के योजनाबद्ध प्रयास हो सके। कहा कि यह परियोजना देश के 26 कृषि युनिवर्सिटी और शोध संस्थानों में चल रही है लेकिन बीएयू केंद्र पर हो रहा काम देश के सर्वोत्तम केंद्रों में से एक है। परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. कौशल कुमार ने औषधीय पौधों के संरक्षण, प्रयोग, प्रोसेसिंग और मार्केट से लिंक करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है इसलिए मानिटरिंग टीम यहां के कार्यों से बहुत संतुष्ट है।
यूनिवर्सिटी की पहचान के रूप में उभर सकता है केंद्र :
बीएयू में नवस्थापित गिलोय प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र भविष्य में युनिवर्सिटी की पहचान के रूप में उभर सकता है।
मानिटरिंग टीम ने औषधीय पौधों की खड़ी फसल, गिलोय के प्रायोगिक प्रक्षेत्र, गिलोय प्रसंस्करण केंद्र तथा एथनोमेडिसिनल प्लांट जर्म प्लाज्म बैंक का भ्रमण किया तथा बेहतरी के लिए आवश्यक सुझाव दिए। इस विषय पर बीएयू के अनुसंधान निदेशक डा. पीके सिंह से भी चर्चा की। टीम में निदेशालय के प्रधान विज्ञानी डा. पीएल शरण, विज्ञानी डा. अकुला चिनापौलैया रेड्डी, डा. गणेश एन. खड़के तथा मनीष कुमार मित्तल भी शामिल थे।