Home खबर आरोग्यमय जीवन के पथप्रदर्शक भगवान् धन्वन्तरि : डॉ. शैलेश कुमार मिश्र

आरोग्यमय जीवन के पथप्रदर्शक भगवान् धन्वन्तरि : डॉ. शैलेश कुमार मिश्र

&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>मनुष्य जब जरा रोग और मृत्यु से त्राहि-त्राहि कर रहा था तभी से स्वास्थ्य के पथ प्रदर्शक की खोज आरंभ हो गई थी<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>मंथन के फलस्वरूप कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान् धन्वंतरि का आविर्भाव हुआ<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-image size-large"><img src&equals;"https&colon;&sol;&sol;mauryanews18&period;com&sol;wp-content&sol;uploads&sol;2025&sol;10&sol;1000160432-1024x967&period;jpg" alt&equals;"" class&equals;"wp-image-4756"&sol;><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>रांची &colon; <&sol;strong>धन से स्वास्थ्य का महत्व अधिक है शायद इसलिए समुद्र मंथन के फलस्वरूप महालक्ष्मी के आविर्भाव से पहले स्वास्थ्य के देवता भगवान् धन्वंतरि का आविर्भाव हुआ। मनुष्य जब जरा रोग और मृत्यु से त्राहि-त्राहि कर रहा था तभी से स्वास्थ्य के पथ प्रदर्शक की खोज आरंभ हो गई थी। ऐसी खोज के लिए मानव की अपेक्षा देव दानवों का दायित्व अधिक था क्योंकि उस समय वे बल बुद्धि में मानव की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ थे। देव दानवों ने समुद्र मंथन किया। वह समुद्र मंथन क्षीर समुद्र का हो या संसार समुद्र का पर था महत्वपूर्ण…। इस मंथन के फलस्वरूप कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान् धन्वंतरि का आविर्भाव हुआ। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में धन्वंतरि के अतिरिक्त शेष तेरह रत्न भी लोकमंगलविधायक प्राणिमात्र के तन मन को स्वस्थ और सुखी बनाने के लिए उपयोग में आते रहे हैं। इस मंथन की सबसे बड़ी सफलता थी भगवान् धन्वंतरि का आविर्भाव। क्योंकि स्वास्थ्य के बिना सारे रत्न व्यर्थ हो जाते हैं। अस्वस्थ जीवन को ढोते हुए मानव की बड़ी-बड़ी संपत्तियां भी विपत्तियों का ढेर मालूम होती हैं। छप्पन भोग की थाली विष की कटारी-सी मालूम होती है। कश्मीर की सुनहली घाटी मृत्यु की तलहटी मालूम होती है। यह स्वस्थ जीवन शरीर&comma; इंद्रिय&comma; मन और आत्मा का सुखद संयोग है- &&num;8216&semi;शरीरेन्द्रिय सत्त्वात्मसंयोग आयुर्जीवनम्।&&num;8217&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-image size-large"><img src&equals;"https&colon;&sol;&sol;mauryanews18&period;com&sol;wp-content&sol;uploads&sol;2025&sol;10&sol;1000160463-691x1024&period;jpg" alt&equals;"" class&equals;"wp-image-4757"&sol;><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धन्वंतरि का आविर्भाव दिवस है &colon;<&sol;strong><br>कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धन्वंतरि का आविर्भाव दिवस है अतः इसे धन्वंतरि त्रयोदशी कहते हैं। यही धन्वंतरि त्रयोदशी काल के घर्षण से घिसकर धनतेरस बन गया है। धनतेरस का अवसर दीपावली की आहट है अतः लोग धनतेरस का संबंध धन से जोड़ लेते हैं पर धनतेरस का धन से दूर-दूर तक संबंध नहीं है। यह धनतेरस स्वास्थ्य के धन को संजोने का दिन है। हमारी संस्कृति स्वास्थ्य संरक्षण को महत्व देती आई है इसलिए धनतेरस के प्रति&comma; धन्वन्तरि के प्रति हमारी श्रद्धा है&comma; हमारी आस्था है। धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। धन्वन्तरि के हाथ में पीयूषपात्र या अमृतकलश विराजता है। इसी अमृत कलश के प्रतीक के रूप में हम धनतेरस के दिन नए बर्तन खरीदते हैं। भगवान् धन्वंतरि के संबंध में इतिहासकारों ने बहुतेरे मत स्थापित कर रखे हैं। क्षीर समुद्र से आविर्भूत तथा काशी के राजा दिवोदास धन्वन्तरि के रूप में दो धन्वंतरियों का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में बताया गया है कि समुद्र मंथन के फलस्वरूप एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुआ&comma; जिसकी भुजाएं लंबी&comma; गला शंख के समान&comma; शरीर सुंदर&comma; गले में माला&comma; शरीर पर पीतांबर&comma; हाथों में अमृत से भरा कलश था। वही आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वन्तरि के नाम से विख्यात हुए। भावप्रकाश में बताया गया है कि इंद्र ने आयुर्वेद सिखा कर धन्वन्तरि को लोककल्याणार्थ पृथ्वी पर भेजा। श्रीमद्भागवत पुराण में ही बताया गया है कि ब्रह्मा के वर से धन्वन्तरि काशी के राजा हुए। वस्तुतः काशी के राजा दिवोदास धन्वन्तरि तथा समुद्र मंथन से निकले धन्वन्तरि दोनों अभिन्न हैं। काशी के राजा दिवोदास धन्वन्तरि ने ही सुश्रुत आदि ऋषियों को शल्यशास्त्र की शिक्षा देते हुए कहा था- अहं हि धन्वन्तरिरादिदेवो जरा रुजा मृत्युहरोऽमराणाम्। शल्यांगमंगैरपरैरुपेतः प्राप्तोऽस्मि गां भूय इहोपदिष्टम्।। अर्थात् देवताओं को जरा रोग और मृत्यु से छुड़ाने वाला आदिदेव धन्वन्तरि मैं ही हूं। आयुर्वेद के अन्य अंगों के साथ शल्यशास्त्र के उपदेश के लिए पुनः पृथ्वी पर आया हूं। भगवान् धन्वंतरि का उपदेश महर्षि सुश्रुत के द्वारा संगृहीत हुआ जो सुश्रुत संहिता के नाम से विख्यात आयुर्वेद का महान ग्रंथ है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-image size-large"><img src&equals;"https&colon;&sol;&sol;mauryanews18&period;com&sol;wp-content&sol;uploads&sol;2025&sol;10&sol;1000160461-755x1024&period;jpg" alt&equals;"" class&equals;"wp-image-4758"&sol;><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र ही नहीं वरन् जीवन पद्धति का है शास्त्र &colon;<&sol;strong><br>आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र ही नहीं वरन् जीवन पद्धति का शास्त्र है। आयु अर्थात् जीवन का वेद है। इसमें जीवन जीने की कला का उपदेश किया गया है। आयुर्वेद का सदुपदेश है कि रोग जीवन में अनियमितता के कारण उत्पन्न होते हैं अतः जीवन पद्धति को ही नियमित और श्रेष्ठ बनाया जाए तो रोग उत्पन्न ही न होंगे। धन्वंतरि जयंती या धनतेरस का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह एक महान विभूति का जन्म दिवस है यह हमारी संस्कृति के उन्नायक के आविर्भाव का दिन है&comma; वरन् इसलिए भी है कि जीवन के महत्वपूर्ण पहलू- स्वास्थ्य के संरक्षक भगवान धन्वंतरि के आविर्भाव का दिन है। इस दिन का महत्त्व केवल हमारे लिए नहीं केवल मानव मात्र के लिए नहीं वरन् संपूर्ण प्राणिमात्र के लिए होना चाहिए। हम स्वास्थ्य के महत्व को समझ लें&comma; स्वस्थ जीवन की राह पकड़ लें धन्वन्तरि के प्रति आस्थावान हों&comma; आयुर्वेद की परंपरा का अनुसरण करें&comma; तभी हमारा जीवन सुखी और समृद्ध होगा।<br><strong>Maurya News18 Ranchi&period;<&sol;strong><&sol;p>&NewLine;

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